विरोध का ये कैसा तरीका..?

दादरी कांड और गुलाम अली का कंसर्ट रोके जाने और इस जैसी अन्य घटनाओं का चौतरफा विरोध सह रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आख़िरकार ख़ामोशी तोड़ दी ..प्रधानमंत्री ने एक ओर जहां इन घटनाओं को अवांछित और दुर्भाग्यपूर्ण बताया तो वहीं कई लोगों पर धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने की बात भी कही, लेकिन विपक्ष अब भी पीएम मोदी को ही इन सब के लिए ज़िम्मेदार बता रहा है.. शिवसेना अपनी हरकतों के लिए पीएम मोदी को कसूरवार ठहरा रही है...शिवसेना का मानना है कि पीएम मोदी दंगों के लिए ही जाने जाते हैं तो ऐसे में उनकी ओर से गुलाम अली और कुलकर्णी घटनाओं की निंदा करना दुर्भाग्यपूर्ण है । वहीं कांग्रेस ने भी पीएम को देश के 125 करोड़ लोगों के लिए ज़िम्मेदार बताया है..कांग्रेस की माने तो देश में जो कुछ भी होता है उसके लिए पीएम की ज़िम्मेदारी बनती है...और वो उससे भाग नहीं सकते...उधर लेखकों का एक-एक कर सम्मान वापिस करना जारी है..चौतरफा हमले से घिरे प्रधानमंत्री मोदी की ना चुप रहकर बन पा रही है ना ही ख़ामोशी तोड़कर..हर ओर से उनको इन घटनाओं के लिए अजीबोगरीब विरोध सहना पड़ रहा है..निश्चित तौर इस विरोध में राजनीति का फ्लेवर तो है ही..पूर्वाग्रह का टच भी काम कर रहा है...शिवसेना जिस तरह खुद की हरकतों के लिए बीजेपी को और पीएम मोदी को दोषी ठहरा रही है वो हैरान करने वाला है...शिवसेना नगर निगम चुनावों में अपनी साख बचाने की जुगत में लगी है..और अपने एजेंडे को पोषित कर रही है...इसलिए इस तरह घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है...वहीं कांग्रेस का आरोप भी अटपटा सा है..कांग्रेस शायद मुज्ज़फरनगर दंगों के वक्त को भूल गई है...जब केंद्र में बैठी मनमोहन सरकार ने दंगों के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराया था..उस वक्त मनमोहन सरकार ने उन दंगों की ज़िम्मेदारी और उनके कार्यकाल में राज्यों में हुए घोटालों की ज़िम्मेदारी खुद क्यों नहीं ले ली...सामने आकर क्यों नहीं खुद को पूरे देश के लिए ज़िम्मेदार बताया...अब बात अपना सम्मान वापस लौटा रहे लेखकों की करते हैं...लेखकों को भारत में फैली असहिष्णुता की चिंता सता रही है...लेकिन ये चिंता इतनी देर से क्यों...? आख़िर क्यों लेखकों ने इतना इंतज़ार किया..इससे पहले भी कई बड़ी बड़ी घटनाएं हुईं...तब क्यों अपने सम्मान वापस नहीं कर दिए..अब ऐसी क्या आफत आ गई जो लेखकों की सहनशीलता जवाब दे रही है..भारत देश ने इससे बड़े बड़े ज़ख़्मों को सहा है.लेखक समाज को दिशा दिखाने वाले होने चाहिए लेकिन जो काम चंद लेखकों की ओर से किया जा रहा है...वो समाज को दिशाहीन कर रहा है..उनका विरोध तर्क हीन और पूर्वाग्रह से पीड़ित नज़र आ रहा है..वहीं मीडिया भी इस भेड़चाल में शामिल  है....वो भी बिना विश्लेषण के विरोध की इस लहर को सीधे सीधे परोस रहा है..जिससे देश की जनता भ्रमित हो रही है...कई लोगों को आम चर्चाओं में दादरी, महाराष्ट्र और पंजाब में हो रहे हो-हल्ले के लिए मोदी को ज़िम्मेदार ठहराते देखा जा सकता है..इसके पीछे जब उनसे कारण पूछा जाता है तो वो सीधे सीधे बोलते हैं..."मोदी की सरकार है दंगे तो भड़केंगे ही..' माना गुजरात दंगों का आघात हमारे ज़हन में गहरा है..लेकिन इस बात से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि न्यायपालिका ने पीएम मोदी को इन मामलों में क्लीनचिट दी है...देश के एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री बनाया है...तो अब इतिहास की उस बात को वर्तमान में रखकर घटनाओं का आंकलन करना कितना जायज़ है...क्या देश में हो रही घटनाओं के लिए राज्य सरकार, क्षेत्र का प्रशासन ज़िम्मेदार नहीं, क्या अफवाहों पर विश्वास करके किसी का कत्ल करने वाली जनता दोषी नहीं...क्या राजनीति से प्रेरित होकर किताबें लिखने वाले लेखक ज़िम्मेदार नहीं...भड़काऊ चीज़ें दिखाकर अपना उल्लू सीधा करने वाला मीडिया दोषी नहीं..क्या दूसरों की भावनाओं को आहत करने वाले दोषी नहीं...क्या इस पूरी असहनशीलता के लिए हम सब दोषी नहीं...क्या इन सभी चीज़ों के लिए सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही दोषी दिखाई देते हैं..शुक्र है विरोध करने वालों ने क्रिकेट के मैदान में भारत की हार और लोगों के रवैए के लिए पीएम मोदी को ज़िम्मेदार नहीं बताया. क्योंकी जिस तरह से हर बात पर पीएम मोदी का विरोध हो रहा है...उसे देखते हुए तो किसी भी चीज़ के लिए पीएम को विरोध के लिए तैयार रहना चाहिए....किसी ने सच ही कहा है किसी पर दोष मढ़ना बहुत आसान है...आज हमारा हर वर्ग इसी से प्रेरित नज़र आता है..




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