श्रधांजलि

       सुकृति शर्मा को श्रधांजलि




 












सुकृति शर्मा,पत्रकारिता में स्नातक एवं उभरती हुई पत्रकार का निधन उनके जन्म स्थान अबोहर में हो गया है.
                 उनकी उम्र २१ वर्ष की थी.उनको अंतिम अग्नि कल उनके पैत्रिक स्थान पर ही दी जाएगी.
छोटी सी उम्र में बड़ी उड़न का दम भरने वाली सुकृति शर्मा ने काफी कम समय में ही समाज सुधर की बड़ी चुनोती को अपना लक्ष्य बना लिया था.समाज सुधर के मुद्दे पर वे हमेशा अपना पक्ष जज्बे के साथ रखती थीं..उनका मानना था की समाज में व्याप्त बड़ी बुराइयों तक पहुँचने के लिए पहले छोटी छोटी बुराइयों को लक्ष्य बनाना होगा.
सन २००८ में राजस्थान पत्रिका में परिक्षण लेते हुए उन्होंने अपने इस लक्ष्य की पुर्ति करनी चाही और वे कुछ हद तक सफल भी रही.गरीबों की सेवा करने के लिए वे हमेशा तत्पर रहतीं थी.अपने स्कूली जीवन में ही उन्होंने गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का महत्वपूर्ण  कार्य किया.उनकी नज़र में कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं था. वे अच्छे विचारों को महत्व देतीं थी.
जानवरों से उनका प्रेम महादेवी वर्मा से कम न था जब वे कहीं किसी आवारा जानवर को  घायल व् भूखा देखतीं तो अपने समस्त कार्यों को छोड़ कर सेवा में लीन हो जाती थी इससे सिद्ध होता है की उनके हृदय में प्राणी मात्र के लिए कितना प्रेमभाव था.
संगीत के प्रति उनमें रूचि नासेर्गिक रूप से विद्यमान थी इस क्षेत्र में वे बाल विकास परिषद् की समूह गान प्रतियोगिता में राज्यस्तरीय पुरुस्कार भी जीत चुकीं थी 
स्नातक की पढाई करने हेतु जब वे राजस्थान से पंजाब के एक बड़े शहर में आई तो उन्हें भारत और इंडिया का अंतर ज्ञात हुआ.वे हमेशा कहतीं थी की भारत वहां है जहाँ लोग अपनी संस्कृति और संस्कारों से जुड़े हैं बाकि सब जगह तो इंडिया ही इंडिया है.वे भारतीय संस्कृति और रीतिरिवाजों को महत्वपुर्ण मानती थीं 
उनका विचार था की भाहरी देशों से आई आधुनिकता अपने साथ आधुनिक बुराइयाँ भी साथ लेकर आई.भारत के नौजवान  नशाखोर होने लगे,माता ,पिता ,कन्याओं का महत्त्व भूल कर उनकी हत्याए करने लगे लाज, शर्म आदर कर्त्व्यप्रयानता और नैतिकता जैसे गुण कहीं काफूर हो गये जिससे देश,समाज,घर खोखले होने लगे. लाज,शर्म,ईमानदारी जैसे उत्तम गुणों की जगह अश्लीलता,बलात्कार,बईमानी जैसे दुर्गुणों ने ले ली.और इन सब की भीड़ में भारतीयता कहीं लापता हो गयी.उनका मानना था की यदि भारत को इन सभी बुराइयों से मुक्त करना है तो उसका एक ही उपाए है.हमें इंडिया में भारतीयता फिर से स्थापित करनी होगी तभी इंडिया की  भीड़ में गुम हो चुका ये भारत फिर से अपनी पहचान बना पायेगा.
समाज सुधार,सेवा,दया आदि शब्दों का प्रयाये बन चुकी सुकृति शर्मा आज हम सब से विदा ले चुकीं हैं यदि वे अपनी जिंदगी और जीती तो शायद अपने लक्ष्यों को पूरा कर पातीं और देश का नाम ज़रूर रोशन करती.

 
!! भगवान् उनकी आत्मा को शांति दे !!









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