मीडिया और सुधारीकरण??


मीडिया और सुधारीकरण ? इन दोनो शब्दों को आज एक साथ सुन पढ़ पाना बहुत कठिन है | मीडिया का सुधारीकरण का  ये गुण कहीं काफूर सा हो गया है | इन की जुगलबंदी सिर्फ पुरानी किताबों के पन्नों में कहीं धूल चाटती मिल सकती है | मीडिया तो अपने कारोबार कि बदौलत नए आयामों को छु रहा है, अपने को जिन्दा बनाये हुए है, पर उसकी आत्मा मर चुकी है | देश के तीनो स्तंभों को क्रियाशील और सुधार का जो  बीड़ा  मीडिया ने उठाया था वो आज मीडिया कि प्रायोरिटी लिस्ट से बाहर  हो चुका हैं | आज मीडिया खुद देश को बर्बाद करने वालों को बर्बादी के आसान तरीके बतला रहा है | देश के दलालों के साथ मिलकर दलाली में लगा है | रशूखदारों के  भ्रष्ट कार्यों का पर्दाफाश करने कि बजाये, उनसे रिश्वत लेता है, और आम लोगों  को बनावटी रिपोर्ट बना, ब्लैकमेल कर हफ्ता वसूली करता है, राह दिखाने वालों में कम, गुमराह करने में मीडिया का भी अब स्थान बनने लगा है | मीडिया ने पार्टी बाजी भी शुरू कर दी है | एक तीर से दो निशाने मारने सीख लिए हैं, इसे जहाँ सीधे तौर पर सरकारी धन मिलता है वहीँ ढेर सारे विज्ञापन भी | २६/११ का मामला हो या राडिया के साथ दलाली का मसला ,मीडिया के लिए अब कुछ भी नाजायज़ नहीं . मीडिया आज केवल दो काम कर रहा है छोटी बात का बड़ा बतंगर और बड़ी बात को तो जाने ही दीजिये..ये  ही वजह है कि आज मीडिया रुपी इस दर्पण में खुद को ढूंढने वाली उसकी परछाई यानि आम जनता भी इसका साथ छोड़ने लगी है | आज वह अकेला है उसको आज आम जनता का साथ नहीं है ,उसके साथ आज  केवल शक्ति का अहंकार है ,जिसके कारण उसे "आधुनिक बिमारियों" ने घेर लिया है | नित नए "सिंड्रोम" अब मीडिया कर्मियों को "इन्फेक्टेड" करने लगे हैं जैसे पैड न्यूज़ सिंड्रोम,ब्लैकमैलिंग,पीत पत्रकारिता,व्यापारिक द्रष्टिकोण.  लेकिन सुधरीकरण  और क्रियाशीलता बनाये रखने के वो गुर अब यदा कदा ही देखने को मिलते हैं, और वो भी तभी ,जब उनमें टी.आर.पी  बढ़ाने कि ताकत हो तो.
  एक वक़्त था जब मीडिया देश और भारतीय संस्कृति के विकास में संलग्न था.  अन्धविस्वासों , कुप्रथायों की दीवार को ढहाकर आम जनता को शिक्षा और वास्तविकता से रूबरू करवाता था , लेकिन वही मीडिया आज प्रकोप,भविष्यवाणियों का बाज़ार खोल कर बैठा है | यही नहीं आपराधिक और राजनितिक मामलों में आगे क्या होने वाला है इसकी भी भविष्यवाणियाँ करने लगा है.
कहीं पैड न्यूज़ कहीं फेक न्यूज़, पीत पत्रकारिता और ना जाने क्या क्या!! मीडिया को लगी ये महामारियां  धीरे धीरे उसकी क्रेडिबिलिटी को ख़तम कर रही है | कहीं भी चले जाओ लोग मीडिया पर फब्तियां कसते आसानी से पाए जा सकते हैं | वे मीडिया कर्मियों को स्वार्थी बताते हैं , और मीडिया को उनके स्वार्थ पूरा करने का साधन | इसके अलावा उनके दिल-ओ-दिमाग में मीडिया कि कोई अन्य तस्वीर नहीं दिखती | मीडियाकर्मियों के लिए मीडिया आज "अन्य-आय" का साधन हो चुका है | "सबसे आगे सबसे तेज़" बने रहने कि इस ओवरटेकिंग में आम जनता का बार बार "एक्सिडेंट" हो रहा है | देश का नुकसान तो हो ही रहा है लोकतंत्र के अनन्य स्तम्भ भी चरमराने  लगे हैं | २४*७ को पूरा करने के लिए ना जाने क्या क्या फलाना ढीम्काना प्रोग्राम दिखाए जाने लगे है | नाम बदल कर एक तरह कि न्यूज़ को ना जाने कितनी बार दिखाया जाता है.राखी सावंत,अन्ना और यु टयुब ने तो काम आसान कर ही दिया है , फिर समय बच जाने पर रहू केतु और शनि का चक्र घुमने लगता है  और इन्ही चक्करों में बेचारे दर्शक भी घूमते चले जाते हैं |
प्रिंट मीडिया भी इस दौर मैं पीछे नहीं है, कई अख़बार तो बस अब नाम के अखबार रह गये हैं | ख़बरों के नाम पर केवल धब्बे ही नज़र आते हैं ,बाकि तो हर जगह सब कमेर्शियल ही कमर्शियल है.
वहीँ मनोरंजन चैनल के भी क्या कहने, उन्होंने तो जैसे देश कि संस्कृति,रीती रिवाजों और नोजवान युवक युवतियों को बिंदास,घर का बिग बॉस और बत्मीज़ बनाने का जिम्मा उठा रखा है.लड़ाई  झगडा, मार-पीट, गाली गल्लौज दिखा, आज लोगों को मनोरंजित किया जा रहा है | सेन्सर के लिए बिठाई गयी विभिन्न कमेटियां भी त्रस्त दर्शकों , पाठकों के जले पे नमक छिड़कने के आलावा और करती ही क्या हैं.मीडिया को अपनी आजादी तो भली प्रकार से याद है पर शायद  "सोसल  रेस्पोंसिबिलिटी" आज उसे घाटे का सौदा लगता  है | विकास कि ओर दोड़ते हमारे देश भारत को  मीडिया कि ये महामारियां वापिस कहीं पीछे न धकेल दे..अगर ऐसा हुआ तो विकास कि इस जंग का नायक और खलनायक और कोई नहीं मीडिया ही कहलायेगा |
.जय हिंद

5 comments:

  1. Achhi shuruat hai sukriti...
    Koshish kijiye ki naye shabdon ko khud tarashiye...waise aapke post me bahut behtar bhasha ka istemal hai magar jab naye shabd jo kisi sthapit shabd ki vyutpatti se niklenge to aap khud apna article padh kar khush hongi..Waise keep writting...all da best!!

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  2. badhiya pryaas hai , lakin shudh hindi nahi , mixing hai, galtiyaan bhi bahut hain, purnviraam matra or coma ki bhaari galtiyaan hain . post karne se pahle do baar awshya padhaa karo ...betaa......ji. " lage raho....muni bete.

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  3. PAHLE PADHO....FIR PADHAAO...!! BETA...!!

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  4. Aap Sabhi Ka Dhanyavad Jo aapne mere liye apna samay nikala.Aapki Batayi Baton Per Zaroor Gaur Karungi..Kripya Issi Tarah Mera Margdarshan Krte Rahen.

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  5. बहुत सुंदर .बधाई

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