संतुलित आहार और AIR

संतुलित आहार और AIR 

सुबह का समय था आज मैं बाकि दिनों से कुछ पहले ही उठ गयी थी. सुबह के उस ख़ालीपन को दूर करने के लिए मैंने रेडियो को अपनी सुबह का साथी बनाया.और मोबाइल पर रेडियो ट्यून किया. सभी प्राइवेट रेडियो स्टेशन भजन कीर्तन करने में लीन थे.मैंने स्टेशन बदला.और आल इंडिया रेडियो लगाया.मुझे तबले की धुन सुनाई पड़ी.और फिर वन्दे मातरम की धुन बजने लगी. मेरा सिर स्वयं ही आनंद से झुमने लगा.अचानक धुन रुकी और एक महिला पुरे दिन में आने वाले कार्यक्रमों का ब्यौरा देने लगी.ब्यौरा कुछ इस प्रकार था.सुबह से ;45 तक आपको देश भक्ति गीत सुनाये जायेंगे,उसके पश्चात् :45 से :०० बजे तक आप हिंदी में खबरे सुनगे.:०० से :१५ तक अंग्रेजी में ख़बरें प्रसारित की जाएँगी.स्थानीय भाषा की खबरे आप :१५ से :३० तक सुन पाएंगे.:३० से कार्यक्रम फ़िल्मी जंक्शन पेश किया जायेगा.महिलायों के लिए कार्यक्रम इतने से इतने बजे तक. करीब "एक बजे" फिर से आपको " एक देश भक्ति गीत "सुनाया जायेगा.उसके बाद ख़बरों, चर्चाओं,स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों,सांस्कृतिक कार्यक्रमों और रात्रि में पुराने फ़िल्मी गीतों के साथ दिन की समाप्ति की जायेगी.पूरी समयसारणी सुनने के पश्चात् मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैं किसी संतुलित आहार की सारणी के बारे में सुन रही थी.जिसमें वक्त के साथ साथ खुराक का भी ध्यान रखा जाता है.सभी पोष्टिक तत्वों को सम्मिलित किया जाता है. ताकि हमारा शारीरिक संतुलन बना रहे.ठीक उसी तरह AIR का पूरा पैकेज सुविचारों सूचनाओं और शिक्षा के उन  सभी तत्वों से परिपूर्ण था जिससे हमारा मानसिक विकास होता रहे लेकिन आज AIR सुनता ही कौन है हमारे देश में युवाओं की संख्या सबसे ज़यादा है पर उन्ही युवाओं को मिर्ची और तडके पसंद आने लगे हैं.ज्ञान वाणी और विविध भारती सुनने की बजाये उन पर feaver 104 चढ़ा है. जिसका सीधा असर उनके व्यक्तित्व विकास पर हो रहा है.जिस तरह गैरज़रूरी खानपान हमारा हाजमा बिगाड़ देते हैं.ठीक उसी प्रकार तड़क-भड़क,महत्वहीन विचार हमारी प्रवृत्ति बिगाड़ डालते हैं.  

एक  पुराणी कहावत भी है "जैसा अन्न वैसा मन" यानि आप जो भी आहार ग्रहण करते हैं आपकी प्रवृत्ति  भी वैसी ही बन जाती है यदि संतुलित आहार लेंगें तो आपका शारीरिक और मानसिक संतुलन भी बना रहेगा और यदि जंक की तरफ भागेंगे तो शरीर को भी ज़ंग लगने में देर नहीं लगेगी.बहुत से युवा आज अपने शारीरिक संतुलन को बनाये रखने के लिए अच्छे खान-पान को अपना रहे है.शारीरिक कसरते कर रहे हैं.लेकिन फिर भी अवसादों से घिरें हैं, नकारात्मकता उनकी प्रवृत्ति का हिस्सा बन चुकी है! उनका मन: संतुलन खो चुका है! अच्छा अन्न ग्रहण करने के बाद भी उनकी मानसिकता का हाजमा बिगड़ा हुआ है!ऐसा क्यों? ऐसा इसीलिए क्योंकि उस अन्न में सुविचारों,उपयोगी सुचनायों और शिक्षा की कमी है.हमारा पुराना दोस्त AIR तो आज भी हमारे समक्ष इन तत्वों से परिपूर्ण थाली लेकर खड़ा है पर हम स्वाद के चक्कर में तड़के, मिर्चों वाली बिग थाली  को चुनते हैं और संतुलित थाली को बेस्वादी बताते हैं, हमारी तर्क शक्ति तेज़ हो जाती है और हम पुरे आनंद  से उसका स्वाद चखते हैं.लेकिन बाद में कुछ अप्रिय होने पर माध्यम को दोष देते हैं जबकि वो हमारा ही चुनाव होता है.ये पाखंड नहीं तो और क्या है. अतः हमें ज़रूरत है अपने चुनावों को एक नई दिशा देने की.जिससे हमारा संपूर्ण विकास हो सके , आचरण सुधर सके और पाखंड का दूर दूर तक हमसे कोई वास्ता न रहे.जब ऐसी चेतना जागेगी तो ऐसे चनलों के अस्तित्व तो ठोकर ज़रूर लगेगी जनता का जनार्दन उन्हें भी बदल डालेगा और देश विकास करेगा.