भूकंप से डर नहीं लगता साहिब..!

अफगानिस्तान के हिंदकुश में आए भूकंप ने पाकिस्तान से लेकर पूरे उत्तर भारत को हिला कर रख दिया..अफगानिस्तान में तो तबाही मची ही, पाकिस्तान में भी 100 से ज़्यादा घरों के दिए बुझ गए....लेकिन इन सबके बीच ये भयानक भूकंप एक तबके के लिए दिवाली ले आया...कई लोगों को भले ही भूकंप से नुकसान हुआ हो..लेकिन इस तबके का तो फायदा ही हुआ..भूकंप तो इनके लिए जैसे सुनहरा मौका लेकर आ गया हो.. .ये तबका है अपराधियों का, लुटेरों का जिन्होंने भूकंप से तितर-बितर हुई व्यवस्था का पूरा लाभ ले लिया..भूकंप से बचने के लिए ग्रेटर नोएडा के सिंडिकेट बैंक कर्मी जब बाहर की ओर भागे..तो लुटेरों को मौका हाथ लग गया..और बैंक से 20 लाख रु. लेकर भाग गए...वैसे भूकंप आने पर अपराधियों, लुटेरों का फायदा होना कोई नई बात नहीं है..ऐसी घटनाएं पहले भी सामने आईं हैं.. जब चिली में भयंकर भूकंप आया था तो अफरा-तफरी का फायदा उठाकर स्थानीय जेल से 300 महिला कैदी फरार हो गईं थीं. वहीं नेपाल में भी भूकंप के दौरान अपराधियों की लॉट्री लग गई..उस वक्त कई खूंखार अपराधी जेल की दीवार में आई दरार का फायदा उठाकर भाग गए..जिनमें कुछ खूंखार अपराधी भी शामिल थे..इसके अलावा नेपाल में भूकंप के दौरान महिला और बच्चों के तस्करों का धंधा भी खूब फला-फूला..कई बच्चों और महिलाओं का अपहरण हो गया. चोरों ने भी जमकर हाथ साफ किया, उधर हैती के विनाशकारी भूकंप में जेलों से भागने वाले कैदियों का आंकड़ा चौकाने वाला है..यहां करीब 4 हज़ार कैदी भूकंप के दौरान भाग गए...जिसपर खुद यूएनओ ने चिंता ज़ाहिर की थी.प्राकृतिक आपदाओं के वक्त अफरा-तफरी मचना तो आम है..लेकिन उस वक्त असमाजिक तत्वों का सक्रिय हो जाना चिंता का विषय है... इस स्थिति से कैसे निपटा जाए..? क्या उपाय किए जाएं..?.कि जानें भी बच जाएं...और व्यवस्था भी ना चरमराए...इस तरह की घटनाएं विषम परिस्थितियों में भी सजगता की मांग करती हैं सरकारों और प्रशासन को इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है

सुनपेड़ का सच

बिसाहड़ा के बाद हरियाणा का गांव सुनपेड़ जातीय भेदभाव और उसकी वजह से हुईं हत्याओं से सुलग रहा है..पूरा देश आज सुनपेड़ को दलितों और सवर्णों में बंटे गांव के तौर पर देख रहा है..जहां सवर्ण पिछड़ों के साथ बेइंसाफी करते हैं..हत्याएं कर दी जाती हैं...वहीं दलित डर के माहौल में रहते हैं...सवर्ण और दलितों की इस कशमकश में फंसे सुनपेड़ का सच क्या है... इस गांव में अगर हमेशा से ही ऐसा हो रहा था...तो अचानक कैसे सुर्खियों में आया..इतने दिन से कहां गायब था...इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा..आपको याद है...कुछ साल पहले शाहरुख ख़ान की एक फिल्म आई थी MY NAME IS KHAN जिसमें उनका एक डायलॉग बड़ा ही अच्छा लगा था.." अम्मी कहती है कि दुनिया में सिर्फ दो तरह के इंसान हैं अच्छे इंसान और बुरे इंसान' ना अच्छे इंसान का कोई जाति धर्म संप्रदाय होता है और ना ही बुरे का..ये डायलॉग हमारे दिलों को छू गया था...क्योंकि इस डायलॉग ने हमारे समाज में फैली गलत धारणाओं को कचौटा था..हमने इस डायलॉग पर खूब तालियां बजाईं लेकिन प्रैक्टिकल होकर इसे कभी नहीं अपनाया. कभी इस नज़रिए से घटनाओं का विश्लेषण  नहीं किया....जब भी जहां भी कोई घटना हुई उसे फटाफट जाति, धर्म, सम्प्रदाय में बांट दिया...फरीदाबाद के सुनपेड़ में भी कुछ ऐसा ही तो हो रहा है..जहां दो परिवारों की आपसी रंजिश की वजह से हत्याएं हुईं..निर्दोषों का खून बहा..दो मासूम भी चल बसे लेकिन हमने इस बुराई को, इस बुरे काम को देखने और इससे लड़ने की बजाए इसे अगड़ों और पिछड़ों में तोड़ दिया..अगर ऐसा ना करते तो काम कैसे चलता..मीडिया को बहस का मुद्दा मिल गया..और राजनेताओं को अपनी राजनीति चमकाने का साधन..  एक के बाद एक नेता सुनपेड़ पहुंचने लगे..इसका नतीजा क्या हुआ.. पूरे देश में सुनपेड़ पर थू-थू होने लगी...पुतले फुंकने लगे...रोष होने लगा...कई दिनों का बवाल खड़ा हो गया...लेकिन इन सबके बीच सुनपेड़ शोकाकुल है..गांव के लोगों ने दो मासूमों की हत्याएं होने पर दिवाली ना मनाने का फैसला किया है...पिछले साल भी जब एक परिवार से जुड़े सदस्यों की ओर से दूसरे पक्ष के परिवार के लड़कों की हत्या की गई थी..तब भी गांव में  दिया नहीं जला था...अगड़े हों या पिछड़े सभी ने जाति, धर्म, सम्प्रदाय को भुलाकर एक दूसरे के सुख दुख में साथ दिया था.. गांव वालों की माने तो उस घटना के बाद भी सब सौहार्द से रह रहे थे.. गांव में अगर किसी सवर्ण की मृत्यु हो जाती तो उसमें सब जाति,समुदाय के लोग शामिल होते...गांव का माहौल बिल्कुल शांत था...एकता बनाए रखने के लिए गांव के लोगों ने पूरी कोशिश की..लेकिन इन सबमें एक वारदात ने पूरे गांव पर भेदभाव की तोहमत लगा दी...  आपसी रंजिश की वजह से दो परिवारों में हुई हत्याओं को लेकर पूरे गांव को अगड़ों और पिछड़ों में बांट दिया गया.हर किसी को शक की निगाह से देखा जाने लगा...इन सबके बीच बुराई कहीं छू मंतर हो गई...उसका विरोध गायब हो गया..और दलित और स्वर्ण सुर्खियां बन गए..मामला दो परिवारों की आपसी रंजिश का था लेकिन उसे ऐसे पेश किया गया जैसे ये पूरा प्रकरण दलितों और सवर्णों का है..बुरा काम उन दो परिवारों ने एक दूसरे के साथ किया..लेकिन सवाल पूरे गांव के लोगों पर उठ रहे हैं...पूरा गांव जातीय भेदभाव को लेकर कटघरे में हैं... आखिर क्यों इस प्रकरण को सीधे तौर पर नहीं देखा जा रहा.?.आख़िर क्यों इस बुरे काम में भी जाति को ढूंढकर ही धारणाएं बनाईं जा रही हैं....क्या ये हमारी एकता के लिए घातक नहीं है...आखिर कौन हैं वो लोग जो आपसी रंजिश के इस खेल में भी समाज को बांटने की साज़िशें रच रहे हैं...?. कौन हैं वो जो समाज को बांट कर लाभ कमाना चाहते हैं.?. ये आप और मैं अच्छी तरह से जानते हैं... अफसोस इस बात का है कि जो लोग आज की तारीख में जाति, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर सिर्फ बुराई के ख़िलाफ हैं उनको पूछने वाला कोई नहीं है...मीडिया  ऐसे लोगों को भूले भटके ही कवरेज देता है..देता भी है तो उनके मुंह से किसी ना किसी तरीके अपने लाभ की बात निकलवाने की कोशिश रहती है...क्यों नहीं मीडिया ऐसी ख़बरों को दिखाते हुए सिर्फ वारदात का ब्यौरा देता..जाति बताने की क्या ज़रूरत पड़ जाती है..वहीं तथाकथित सेक्यूलर नेता भी जाति सुनते ही वहां पहुंच जाते हैं...क्यों नहीं सिर्फ बुरे काम की निंदा करते.....इस घटना में दो मासूमों का मारा जाना अहम है ना कि मारे गए दो मासूमों का किसी जाति विशेष से संबंध रखना...अगर उनकी जाति ना पता चलती तो क्या बच्चों के प्रति हमारी संवेदनाएं कम हो जातीं..?.हमें हत्याओं का विरोध करना चाहिए..फिर वो चाहे दलित की हो या फिर सवर्णों की. सिर्फ.बुराई का विरोध होना चाहिए...सुनपेड़ भी बुराई के विरोध में हैं..लेकिन उसकी सच्चाई सुनने वाला कोई नहीं..है...

विरोध का ये कैसा तरीका..?

दादरी कांड और गुलाम अली का कंसर्ट रोके जाने और इस जैसी अन्य घटनाओं का चौतरफा विरोध सह रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आख़िरकार ख़ामोशी तोड़ दी ..प्रधानमंत्री ने एक ओर जहां इन घटनाओं को अवांछित और दुर्भाग्यपूर्ण बताया तो वहीं कई लोगों पर धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने की बात भी कही, लेकिन विपक्ष अब भी पीएम मोदी को ही इन सब के लिए ज़िम्मेदार बता रहा है.. शिवसेना अपनी हरकतों के लिए पीएम मोदी को कसूरवार ठहरा रही है...शिवसेना का मानना है कि पीएम मोदी दंगों के लिए ही जाने जाते हैं तो ऐसे में उनकी ओर से गुलाम अली और कुलकर्णी घटनाओं की निंदा करना दुर्भाग्यपूर्ण है । वहीं कांग्रेस ने भी पीएम को देश के 125 करोड़ लोगों के लिए ज़िम्मेदार बताया है..कांग्रेस की माने तो देश में जो कुछ भी होता है उसके लिए पीएम की ज़िम्मेदारी बनती है...और वो उससे भाग नहीं सकते...उधर लेखकों का एक-एक कर सम्मान वापिस करना जारी है..चौतरफा हमले से घिरे प्रधानमंत्री मोदी की ना चुप रहकर बन पा रही है ना ही ख़ामोशी तोड़कर..हर ओर से उनको इन घटनाओं के लिए अजीबोगरीब विरोध सहना पड़ रहा है..निश्चित तौर इस विरोध में राजनीति का फ्लेवर तो है ही..पूर्वाग्रह का टच भी काम कर रहा है...शिवसेना जिस तरह खुद की हरकतों के लिए बीजेपी को और पीएम मोदी को दोषी ठहरा रही है वो हैरान करने वाला है...शिवसेना नगर निगम चुनावों में अपनी साख बचाने की जुगत में लगी है..और अपने एजेंडे को पोषित कर रही है...इसलिए इस तरह घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है...वहीं कांग्रेस का आरोप भी अटपटा सा है..कांग्रेस शायद मुज्ज़फरनगर दंगों के वक्त को भूल गई है...जब केंद्र में बैठी मनमोहन सरकार ने दंगों के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराया था..उस वक्त मनमोहन सरकार ने उन दंगों की ज़िम्मेदारी और उनके कार्यकाल में राज्यों में हुए घोटालों की ज़िम्मेदारी खुद क्यों नहीं ले ली...सामने आकर क्यों नहीं खुद को पूरे देश के लिए ज़िम्मेदार बताया...अब बात अपना सम्मान वापस लौटा रहे लेखकों की करते हैं...लेखकों को भारत में फैली असहिष्णुता की चिंता सता रही है...लेकिन ये चिंता इतनी देर से क्यों...? आख़िर क्यों लेखकों ने इतना इंतज़ार किया..इससे पहले भी कई बड़ी बड़ी घटनाएं हुईं...तब क्यों अपने सम्मान वापस नहीं कर दिए..अब ऐसी क्या आफत आ गई जो लेखकों की सहनशीलता जवाब दे रही है..भारत देश ने इससे बड़े बड़े ज़ख़्मों को सहा है.लेखक समाज को दिशा दिखाने वाले होने चाहिए लेकिन जो काम चंद लेखकों की ओर से किया जा रहा है...वो समाज को दिशाहीन कर रहा है..उनका विरोध तर्क हीन और पूर्वाग्रह से पीड़ित नज़र आ रहा है..वहीं मीडिया भी इस भेड़चाल में शामिल  है....वो भी बिना विश्लेषण के विरोध की इस लहर को सीधे सीधे परोस रहा है..जिससे देश की जनता भ्रमित हो रही है...कई लोगों को आम चर्चाओं में दादरी, महाराष्ट्र और पंजाब में हो रहे हो-हल्ले के लिए मोदी को ज़िम्मेदार ठहराते देखा जा सकता है..इसके पीछे जब उनसे कारण पूछा जाता है तो वो सीधे सीधे बोलते हैं..."मोदी की सरकार है दंगे तो भड़केंगे ही..' माना गुजरात दंगों का आघात हमारे ज़हन में गहरा है..लेकिन इस बात से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि न्यायपालिका ने पीएम मोदी को इन मामलों में क्लीनचिट दी है...देश के एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री बनाया है...तो अब इतिहास की उस बात को वर्तमान में रखकर घटनाओं का आंकलन करना कितना जायज़ है...क्या देश में हो रही घटनाओं के लिए राज्य सरकार, क्षेत्र का प्रशासन ज़िम्मेदार नहीं, क्या अफवाहों पर विश्वास करके किसी का कत्ल करने वाली जनता दोषी नहीं...क्या राजनीति से प्रेरित होकर किताबें लिखने वाले लेखक ज़िम्मेदार नहीं...भड़काऊ चीज़ें दिखाकर अपना उल्लू सीधा करने वाला मीडिया दोषी नहीं..क्या दूसरों की भावनाओं को आहत करने वाले दोषी नहीं...क्या इस पूरी असहनशीलता के लिए हम सब दोषी नहीं...क्या इन सभी चीज़ों के लिए सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही दोषी दिखाई देते हैं..शुक्र है विरोध करने वालों ने क्रिकेट के मैदान में भारत की हार और लोगों के रवैए के लिए पीएम मोदी को ज़िम्मेदार नहीं बताया. क्योंकी जिस तरह से हर बात पर पीएम मोदी का विरोध हो रहा है...उसे देखते हुए तो किसी भी चीज़ के लिए पीएम को विरोध के लिए तैयार रहना चाहिए....किसी ने सच ही कहा है किसी पर दोष मढ़ना बहुत आसान है...आज हमारा हर वर्ग इसी से प्रेरित नज़र आता है..




ये पाकिस्तान की चाल तो नहीं..?

आपको याद है कि कुछ दिन पहले भारत के टीवी चैनल्स पर पीओके का मंज़र दिखाया गया था...जिसमें वहां के स्थानीय लोग आज़ादी के लिए आंदोलन कर रहे थे...टीवी चैनल्स ने पाकिस्तानी फौज की ओर लोगों पर हो रही क्रूरता को भी दिखाया था..कि कैसे पाकिस्तानी फौज वहां के लोगों को जबरन आतंकी बनने के लिए मजबूर करती है....ये सब तब टेलीकास्ट हो रहा था..जब नवाज़ शरीफ संयुक्त राष्ट्र में कश्मीरी अलगाववादियों के अधिकारों की बातकर रहे थे...और भारत सरकार पर उनके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने का इल्ज़ाम लगा रहे थे...इस वीडियो से जहां भारत ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया था...और दुनिया को उसके दोगले चेहरे की तस्वीर भी दिखाई थी.....लेकिन उसके कुछ दिन बाद ही कश्मीर में हालात बिल्कुल बदल गए....कश्मीर में सड़कों पर प्रदर्शन होने लगा....विरोध में नारे लगने लगे...माहौल गरमा गया.....जिसका केंद्र बीफ बन गया...और सारा विरोध इसी के आगे पीछे घूमने लगा..बीफ को कश्मीरी मुसलमानों के हक के साथ जोड़ दिया गया....घाटी जलने लगी...विधानसभा में भी हंगामा हुआ ..तो बाज़ार भी बंद हो गए.दुनिया कश्मीर पर बात करने लगी.....ये सब अचानक से नहीं हुआ.....इसके पीछे कहीं ना कहीं पाकिस्तान का हाथ होने का शक है.....सेना के एक पूर्व अफसर ने भी इस ओर से ध्यान दिलाया है...उनके मुताबिक आए दिन हो रही आतंकी घुसपैठ, हिंदु मुसलमान को तोड़ने की कोशिश, विधानसभा में जारी हो-हल्ला, पाकिस्तान की चाल है..इन सभी मुद्दों को जोड़कर देखने की ज़रूरत है...पाकिस्तान का मकसद घाटी की आबो-हवा को आतंकित करना है...पाक घाटी के लोगों में अविश्वास पैदा करना चाहता है...पाकिस्तान तो मौकापरस्त है वो चाहता है कि वैश्विक स्तर पर कश्मीर को लेकर भारत पर सवाल उठें...और उसे संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात को बल देकर कहने का मौका मिले...ऐसे में ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि ऐसे नापाक पड़ोसी से सतर्क रहा जाए...वहीं मुफ्ती-मोदी सरकार को भी प्रशासन व्यवस्था पर ध्यान देने की ज़रूरत है.क्योंकी विधानसभा में उनके नेताओं की भी उग्रता सामने आ रही है....जिसने माहौल को और बिगाड़ने का ही काम किया है...इसलिए ज़रूरी है कि पाकिस्तान की इन बारीक चालों को समझा जाए...और उसी के मुताबिक सयंम से काम लिया जाए...

गाय क्यों बने राष्ट्रीय पशु..?


दादरी के बिसाहड़ा गांव में जो कुछ हुआ उसने हमारे समाज के सामने कई सवालों को खड़ा कर दिया है...उनमें से ही एक सवाल उठा है गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने का....कई मंत्रियों, नेताओं ने इसके लिए अपने अपने विचार रखे हैं...हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने भी गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने की सिफारिश  की है.....तो बाबा रामदेव ने भी इसपर अपनी सहमति जताई है...गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने का ये सवाल सच में आज सोचने लायक है...जिसके पीछे कई तर्क दिए जा सकते हैं...पहला तर्क हमारे सामाजिक तानेबाने से जुड़ा है...भारतीय समाज विभिन्नताओं से भरा है...लेकिन भारत के प्रबुद्ध लोगों ने इन विभिन्नताओं को एकता में पिरौने के लिए हर कोशिश की है....हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई सबकी मान्यताएं, सबके भगवान अलग हैं...लेकिन भारत ने सबसे ऊपर की बात कह कर भगवान को एक माना है...सभी धर्मों की एक जैसी बातों को किताबों में पढ़ाया जाता है....ताकि बच्चों को ये ज्ञान मिल सके कि हम सब एक हैं......हर उस अच्छी चीज़ को जोड़ने की कोशिश हुई है...जिसने भारत को एकता की ओर बढ़ाया है...गायकों ने अपने गीतों से...कवियों ने अपनी कविताओं से...हर किसी ने कोशिश की है....तो ऐसे में हम गाय को कैसे भूल सकते हैं...जी हां गाय..एक ऐसा पशु जिसने हमें एक रहने की प्रेरणा दी है....जिसे हर किसी ने जाना और माना है..हिंदू धर्म में तो इसे मां का दर्जा दिया ही गया है...इस्लाम धर्म ग्रंथों में भी गाय के महत्व को माना गया है....हदिस-ए-मुबारक में गाय के दूध को उत्तम बताया गया है...साथ ही गाय के गोश्त को बीमारी करने वाला कहा गया है... गोकशी यानी गोहत्या को भी बुरा बताया गया है.. अब बात सिख धर्म की करते हैं...सिख धर्मगुरुओं ने भी गाय का गुणगाण किया है...
सिख धर्म में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करते हुए कहा था कि यह पंथ आर्य धर्म, गौ-ब्राह्मण, साधु-संत और दीन दुखी जन की रक्षा के लिए बना है। उन्होंने अपने ‘दशम ग्रंथ’ में एक जगह लिखा है, 
'यही देहु आज्ञा तुर्क को सपाऊँ, गो घात का दुख जगत से हटाऊँ। 
यही आस पूरन करो तौं हमारी मिटे कष्ट गौऊन छुटे खेद भारी।' 
सन 1871 में पंजाब में मलेर कोटला में नामधारी सिखों ने गो रक्षा के लिए अपनी कुर्बानियां दी थीं
इसाई धर्म का भी गाय से जुड़ाव रहा है...ईसा मसीह का जन्म गऊ शाला में हुआ था...इसलिए उनका गायों से ख़ास लगाव था...
आर्थिक ताने बाने की बात करें...तो गाय भारतीय गांवों की आर्थिकता का अहम हिस्सा रही हैं....
.भारत के गांवों की भेड़, बकरी, ऊंट के बिना तो कल्पना की जा सकती है...लेकिन गाय के बिना भारत के गांव की कल्पना करना बेमानी है...गाय  से जहां लोगों को पौष्टिक दूध मिल रहा है...तो वहीं उसके दूध को बेचकर वो रोज़गार भी पा रहे हैं.....गाय को ग्रामीण इलाकों में किसी परिवार के सदस्य की तरह ही पाला जाता है.....फिर चाहे वो हिंदू की गाय हो या फिर मुसलमान की..सर्वोत्तम मानी जाने वाली भारत की देशी गाय की तादात लगातार घटती जा रही है....जिसे बचाना बेहद ज़रूरी है...इसकी उपयोगिता को जानकर ही ब्राज़ील, अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत में पाई जाने वाली गिर नस्ल को अपने देश ले जाकर पाल रहे हैं...और उनका निर्यात चीन जैसे देशों को भी कर रहे हैं.

गाय की इस महत्ता को धर्मों ने तो पहचाना ही भारत में विदेश से आईं ताकतों ने भी खूब सराहा...खुद अकबर के शासनकाल में गोहत्या पर प्रतिबंध लगा हुआ था... औरंगज़ेब ने भी गोहत्या पर पाबंदी लगा रखी थी. हर कोई गाय के महत्व को जानता और मानता था...गाय के अलावा कोई और पशु ऐसी ख़ासियतें रखता हो तो ज़रा बताएं...जिसको हर धर्म ने माना हो....जिसको मुगल बादशाहों ने पहचाना हो..जिसको पालने की सिख धर्मगुरु ने वकालत की हो...जिसके दूध, गोबर, मूत्र, का कई बिमारियों को सही करने में इस्तेमाल हुआ  .जिसके चलने से मिट्टी की उर्वर्ता भी बढ़ जाती हो. ..जो मरकर भी उपयोगी हो...ऐसा पशु है गाय...
अब कोई कहेगा कि गाय की छवि कमज़ोर जानवर की है...तो इसे भारत का राष्ट्रीय प्रतीक कैसे बनाया जा सकता है..जब गाय अपने दूध से पूरे देश में ताकत का संचार कर रही है...बीमारियों से लड़ने की ताकत दे रही है..तो गाय की छवि को कमज़ोर कैसे कहा जा सकता है...वहीं गाय अहिंसा का भी प्रतीक है...जिसका भारत हमेशा से पक्षधर रहा है.. महान धर्मनिर्पेक्ष और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने भी गाय को अहम बताया है...गांधी ने गाय के लिए कहा है कि अगर कहीं गाय कटती है तो समझा जाए वहां मुझे काटा जा रहा है....भारत के राष्ट्रपिता की ओर से दिया गया ये बयान क्या कोई मायने नहीं रखता....क्या हमें बापू के इस संदेश की ओर ध्यान नहीं देना चाहिए...इन सभी तर्कों को ध्यान में रखकर  गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने की बात कही या सोची जाए तो गलत नहीं होगा....बस सबको एक होकर इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है.....


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नेपाल का इमोशनल अत्याचार..!


जब किसी कमज़ोर शख़्स को किसी ताकतवर शख़्स से कोई बात मनवानी हो तो वो अपनी कमज़ोरी का खूब इस्तेमाल करता है...उसकी कमज़ोरी ही उसकी ताकत बन जाती है....और वो उसी के सहारे अपने से ताकतवर शख़्स को अपने बस में करने की कोशिश करता है...ऐसा ही कुछ आजकल भारत का पड़ोसी देश नेपाल कर रहा है...नेपाल में आजकल पैट्रोल डीज़ल और अन्य ज़रूरी सामानों की  भारी कमी आ गई है....जिसकी वजह से जनता में असंतोष पैदा हो रहा है...अब नेपाल अपने यहां मची इस खलबली के लिए भारत को दोषी बता रहा है...इतना ही नहीं नेपाल ने भारत की शिकायत संयुक्त राष्ट्र में भी कर दी है..नेपाल का आरोप है कि भारत जानबूझ कर अपने यहां से माल की सप्लाई रोके हुए है...
दरअसल भारत हमेशा से ही नेपाल के लिए ज़रूरी सामान पहुंचाता रहा है....लेकिन इन दिनों नेपाल में  संविधान को लेकर विवाद जारी है...मधेसी इलाके के लोग संविधान को स्वीकार नहीं कर रहे हैं....और संविधान में भेदभाव का आरोप लगाते हुए संधोशन की मांग कर रहे हैं...मधेस नेपाल का वो इलाका है जिसकी सीमा भारत से सटती है...अपनी मांगों को लेकर आंदोलन पर बैठे मधेसियों ने नाकेबंदी कर रखी है....जिसकी वजह से भारत से नेपाल सीमा पर पहुंच रही गाड़ियां वापस लौट रही हैं...लेकिन नेपाल अपने आतंरिक हालातों को स्वीकारने की बजाए भारत को आइना दिखाने में लगा है...इतना ही नहीं नेपाल ने भारत को चीन से मदद लेने धमकी भी दे दी है...नेपाल ये धौंस ऐसे ही नहीं दिखा रहा...दरअसल नेपाल अब अपनी ताकत को पहचान चुका है...और अपनी कमज़ोरी को दूर करने के लिए उसका बेजा इस्तेमाल कर रहा है...नेपाल से रिश्ते कायम रखना भारत और चीन दोनों के लिए अहमियत रखता है...इस सच को जानते हुए वो भारत पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है...नेपाल जानता है कि भारत कभी भी नेपाल को नाराज़ नहीं करना चाहेगा...इसी चीज़ का नाजायज़ फायदा उठाने की कोशिश हो रही है...सच ये भी है कि नेपाल को अब भारत की मदद की ज़्यादा ज़रूरत नहीं रह गई है...क्योंकी अब नेपाल को कई विदेशी संस्थाएं भी मदद दे रही हैं..इसलिए अब भारत का ये पुराना साथी रिश्तों को भूल रहा है...ऐसे वक्त में भारत को दोनों तरफ से हालातों को संभालने की ज़रूरत है...नेपाल जिस नाकेबंदी के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहरा रहा है...उसपर भारत की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है...जो सही नहीं है...भारत को भी अपना रुख साफ करना चाहिए.....साथ ही नेपाल की मदद के लिए जल्द से जल्द कोशिश होनी चाहिए....अगर सड़क मार्ग से सामान नहीं भेजा जा सकता है...तो हवाई मार्ग तो खुले हैं....नेपाल की जनता को भारत पर विश्वास है...जो भारत के लिए सबसे अहम है..जिसको बनाए रखने के लिए भारत को हरसंभव कोशिश करनी चाहिए.