BREAKING NEWS VERSUS BREAKING BLOGS &TWEETS

          आगे कौन !!! ब्रेकिंग न्यूज़ या ब्रेकिंग ट्वीट्स,  ब्लॉग
आम जिन्दगी में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ बहुत ज्यादा बनी रहती है , चाहे वह धन का मसला हो ! बल का मामला हो या फिर ज्ञान का मुद्दा !हर कोई आगे निकलना चाहता है | समाज में फैली ऐसी प्रतिस्पर्धा को भांप कर उसका फायदा मीडिया ने बखूबी उठाया है| सबसे पहले सबसे तेज और आपको आगे रखने का ज़िम्मा अब मीडिया ने अपने कन्धों पर ले लिया है और आपके लिए ब्रेकिंग न्यूज़ की कतार लगा कर रख दी है |
हर चैनल आपको आगे रखने के लिए, आपमें सोच का ज़ज्बा पैदा करने के लिए आँखे मूँद कर २४*७ सरपट भागने लगा हैं और हर न्यूज़ को ब्रेकिंग बनाने लगा है | ब्रेकिंग न्यूज़ की चली इस अंधाधुंध दौड़ को पहला झटका तब लगा जब २००८ के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बराक ओबामा ने चुनाव प्रचार और जनता तक पहुँच बनाने के लिए टीवी का नहीं बल्कि माइक्रो ब्लॉग और सोशल साइट्स  का इस्तेमाल किया |  इस कदम से ब्रेकिंग न्यूज़ सिंड्रोम को खासा नुकसान पंहुचा | अरब देशों के जन जागरण में भी सोशल साइट्स ,माइक्रो ब्लॉग  व ट्वीट्स ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की | अब टीवी चैनलों को ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए ट्वीट्स और ब्लॉग पर निर्भर रहना पड़ रहा है | ब्रेकिंग न्यूज़ की जगह ब्रेकिंग ब्लॉग व ट्वीट्स ने ले ली हैं |
ख़बरों और प्रसिद्ध लोगों के वक्तव्य जानने के लिए निजी मुलाकातों पर निर्भर रहने वाले पत्रकार अब ट्वीट्स और ब्लॉग को प्राथमिकता देने लगे हैं | समाचार पत्र और टीवी चैनल प्रसिद्द ब्लॉग व ट्वीट्स को कवरेज दे रहे हैं | टीवी वालों की रचनात्मकता के तो क्या ही कहने ?!! एक ट्वीट पर पूरा-पूरा प्रोग्राम ही रच डालते है | अमिताभ बच्चन ,आडवानी , मोदी के ब्लॉग आये दिन सुर्खियाँ बटोरते हैं | जनता द्वारा सोशल साइट्स की उपयोगिता को देखते हुए ओपीनियन लीडरों ने भी ऑनलाइन रहना शुरू कर दिया है | जनता की नब्ज जानने  के लिए फेसबुक , ट्वीटर आज लाज़मी हो गया है | नेता जी भी अब कम्पुटर  सीखने लगे हैं | जब एक ही छत के नीचे सब कुछ मिल जाये तो कोई और सहारा क्यों तलाशें ? बदलती मीडिया रणनीतियों का अंदाजा लगा अन्ना टीम द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल काबिल- ऐ - तारीफ है | सोशल मीडिया की बदौलत इस आन्दोलन को बड़ा जनसमर्थन हासिल हुआ | हालाँकि इस आन्दोलन ने पृष्टभूमि पर अपना वर्चस्व खो दिया लेकिन विर्चुअल दुनिया में आज भी इसका बोलबाला है | 
वहीँ गद्दाफी,मुबारक  की तरह भारत की पीएमओ ने भी इस बदलाव को भांपने में ज़रा देर कर दी | परिणाम ये निकला की अन्ना हजारे के आन्दोलन का पारा लोगों के सर चढ़ता गया और सरकार का ग्राफ निरंतर गिरता गया | गिरते हुए ग्राफ से घबरा कर सरकार ने आनन्- फानन में पंकज पचौरी को अपना मीडिया सलाहकार बना दिया | पचौरी एक अच्छे टीवी एंकर व संपादक हैं | उन्होंने पीएमओ में आते ही सोशल मीडिया के उपयोग को प्राथमिकता दी , लेकिन उनकी इस प्राथमिकता को तभी ऊँचाइयाँ मिल सकती हैं जब पी.एम् अपने मीडिया संकोच को कम करें | वहीँ ख़बरों को तोड़- मरोड़ कर पेश करने वाले एल्क्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया को जनता के बदलते रूप को  समझते हुए शिक्षा लेने का वक़्त है क्योंकि सोशल मीडिया ने उन्हें सच्चाई तक पहुँचने  का शोर्ट-कट उपलब्ध करवा दिया है | कुल मिला कर आगे निकलने की इस पूरी रेस में सोशल मीडिया ने सबको पछाड़ दिया है | इस दौड़ में तभी जीता जा सकता है जब सोसाइटी के वर्तमान आईने सोशल मीडिया के सामानांतर चला जाये तभी असली जीत प्राप्त होगी |