मैं हीजड़ा नहीं इंसान हूं...!!



किन्नर जिन्हें हम आम बोलचाल में हीजड़ा कह देते हैं हिजड़ा क्या है..कौतूहल का विषय....एक गाली, असक्षमता की निशानी, बेबस अवस्था या फिर एक ऐसा मर्द, जिसने औरतों की तरह चूड़ियां पहनी है...एक ऐसा समूह जो ना जाने कहां से जानकारी जुटा कर शादी विवाह के माहौल में ताली पीटते हुए लोगों के घरों में ज़बरदस्ती आन घुसते हैं....

किन्नरों के बारे में हमारी जानकारी इन बातों के इर्द-गिर्द ही तो घूमती है...हमने इस से ज़्यादा ना तो इनके बारे में जानने की कोशिश की और ना ही इस बिरादरी ने कभी मुखरता दिखाई......लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हमें किन्नरों के बारे में हमारी इस संकीर्ण जानकारी के दायरे को बदलने पर मजबूर कर दिया है....देश की उच्चतम न्यायालय ने किन्नरों को तीसरी लिंग श्रेणी के रुप में मान्यता दे दी है. यानि...पुरुष, महिला के बाद इनको भी तीसरे लिंग के रुप में स्वीकार किया गया है...ये एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला है जिसके आने से गुमनामी के अंधेरे में जी रहे इन किन्नरों को एक नया जन्म मिला है...जहां इनके पास वो सब सुविधाएं और अधिकार होगें जो संविधान ने एक आम नागरिक को दिए हैं..पर एक बड़ा सच तो ये है कि हममें से ज़्यादातर लोग ये इस बात से ही वाकिफ नहीं हैं कि आज तक इनके साथ क्या क्या क्रूर अन्याय हुए है...आइए हम इनके साथ हुए अन्यायों की एक लम्बी फेहरिस्त आपको बताते हैं...

अन्याय नंबर 1:  4000 साल पुरानी इस जाति ने महाभारत, रामायण, कामसूत्र जैसे ग्रंथों और कई बड़े राजाओं के दरबार में एक विशेष स्छान पर होने के प्रमाण दिए हैं लेकिन आज तक इनके पास अपनी पहचान का सबूत देने के लिए एक जन्म प्रमाण पत्र नहीं हैं...

अन्याय नंबर 2: आधार कार्ड, राशन कार्ड, जॉब कार्ड, पासपोर्ट, लाइसेंस जैसीं आधारभूत सुविधाओं से ये महरुम हैं

अन्याय नंबर 3: हमारे देश में किन्नर है ही नहीं..! ये मैं नहीं ये सरकारी दस्तावेज़ कहते हैं... किसी भी देश में किसी समुदाय के होने का प्रमाण कैसे मिलता है..?. जणगणना से....लेकिन आज तक इनकी कोई आधिकारिक गिनती नहीं की गई... 2011 में सी.वाई कुरैशी के प्रयासों से जणगणना में इन्हें अन्य की श्रेणी में रखा है.....यानि यहां भी इन्हें कोई पहचान नहीं दी गई

अन्याय नंबर 4: गिनती के सरकारी आंकड़े ना होने की वजह से ये समुदाय राज्यों और केंद्र की योजनाओं का कभी टारगेट नहीं रहे, इनके कौशल विकास के लिए कोई कार्यक्रम नहीं है...

अन्याय नंबर 5: घर में बच्चा पैदा होने पर जिन किन्नरों से हमारा समाज आशीष लेना पसंद करता है वही सभ्य समाज स्कूल में अपने बच्चे को एक किन्नर के साथ नहीं पढ़ाना चाहता, जिस दबाव की वजह से इनको स्कूली शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है।

अन्याय नंबर 6: शिक्षा ना मिलने की वजह से इनको कहीं नौकरी मिल पाना असंभव हो जाता है।...ऐसे में आजीविका चलाने के लिए अगर ये लोग स्वरोजगार के बारे में सोचें भी तो बैंक इनको स्थाई आमदनी का स्त्रोत ना होने की वजह से ऋण नहीं देते, बैंक के दस्तावेज़ों में भी महिला

पुरुष के अलावा कोई तीसरा स्थान नहीं है।..नौकरियां देना तो दूर की बात.. इनकी विकलांगता को ढाल बना कर इस्तेमाल कर लिया जाता है.. ...मुंबई में 2001 में बैंकर श्री शेट्टी ने बैंक की तरफ से दिए गए कर्ज को वसूलने और बिहार सरकार ने 2006 में टेक्स कलेक्टर के रूप में इनसे काम लिया था इस तरह के कामों ने इनको काम तो दिलाया पर लेकिन यह अधिकार के रूप में नहीं आया, बल्कि इस काम को ऐसे भी देखा गया कि ये तो पैसा निकाल ही लायेंगे।

अन्याय नंबर 7: अगर स्वास्थ्य सुविधाओं की चर्चा करें तो भी ये बिरादरी पिछड़ी हुई है...एक चैनल को दिए इंटरव्यू में किन्नर अनु का कहना है कि अगर हम अस्पताल में डॉक्टर को दिखाने जाते हैं..डॉक्टर इनके साथ अछूतों सा व्यवहार करते हैं..और अगर छूते भी हैं तो गलत तरीके से...जिससे इनको सही ईलाज नहीं मिल पाता...भारत में स्त्री रोग, पुरुष रोग और शिशु रोग विशेषज्ञ हैं..लेकिन इनके लिए किसी भी तरह की अलग सुविधा नहीं है..सार्वजनिक स्थानों पर बने सुलभ शौचालय की सुविधा भी इनके लिए दुर्लभ है..क्योंकि इन्हे सिर्फ पुरुष और महिला के नज़रिए से बनाया गया है..ऐसे में इन लोगों का क्या जो ना तो स्त्री हैं ना ही पुरुष...?

अन्याय नंबर 8: सरकार ने इनके लिए पेंशन स्कीम तो चलाई जिसमें एक उम्र बीतने के बाद इनकों 1000 रुपये प्रति महीने का दिए जाने का प्रावधान था...लेकिन यहां भी इनके साथ हुआ एक सबसे बड़ा मज़ाक..पेंशन स्कीम के लिए भी जन्म प्रमाण पत्र की दरकार है..तो बताइए जिनके जन्म पर ही सवालिया निसान लगा दिया गया वो जन्म प्रमाण पत्र कहां से लाएं...

अन्याय नंबर 9: संविधान भी तीसरे लिंग के व्यक्तियों को आदतन अपराधी मानता है..अपराधिक अपराधी अधिनियम 1971 के तहत इनको आदतन अपराधी माना गया है..इनको शक के आधार पर ही गिरफ्तार किया जा सकता है..

अन्याय नंबर 10:  भारत के संविधान में कमज़ोर वर्ग की एक सूची सुझाई गई है जिसमें बच्चे, महिलाएं बुज़ुर्ग, विकलांग आदि आते हैं तो ये लोग भी तो एक सैक्सुअल बिमारी का शिकार हैं...जिसका फिलहाल कोई इलाज नहीं है तो ऐसे में इन्हें इस श्रेणी में रख कर क्यों नहीं देखा जाता क्या ये बर्ताव अन्याय नहीं है..?


ये सब अन्याय तो उन अन्यायों का केवल आधार मात्र ही हैं जो इस बिरादरी को सहने पड़े...इन आधारभूत अधिकारों के ना होने पर ना जाने इनका कितनी बार शोषण हुआ होगा..कौन जाने इनको किन किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा होगा....शायद उसी का नतीजा है कि इस बिरादरी में कुछ लोगों के कदम वैश्यावृति के विष और अपराध की दुनिया की तरफ बढ़ गए...आज ये हमें रेड लाइट पर भीख मांगते अपने पेट के लिए नाचते गाते नज़र आते हैं।.....क्या कारण रहे कि आज तक सरकार और समाज ने इनकी हालत से वाकिफ होते हुए भी चुप्पी साधे रखी.?.अगर आज हम किसी को जाति के आधार पर कोई कटाक्ष करते हैं तो समाज को ये गवारा नहीं होता।.जब किसी एडस के मरीज़ की बात होती है तो उसके साथ सहानुभूति करने की बात कही जाती है.. बताया जाता है कि उनको छूने से एडस नहीं होता..एडस मरीजों को अगर स्कूलों या नौकरी से निकाल दिया जाए तो कानूनी कार्रवाई भी हो जाती है......फिर जन्मजात सैक्सुअली विकलांग इन किन्नर लोगों के साथ ऐसा पक्षपात क्यों....हमारे संविधान ने हमे समानता, स्वतंत्रता जैसे कई अधिकार दिए.लेकिन लगता है इस बिरादरी से तो हमने मानव होने के अधिकार भी छीन लिए.जिसकी झलक इनके रिती-रिवाज़ों पर भी साफ दिखाई देती है. इनकी तो जिंदगीं भी गुमनामी में और मरने पर भी उजाला नसीब नहीं..इन्होनें मजबूरन आधी रात के अंधेरे में मृतक किन्नर का दाह संस्कार करने की प्रथा बना ली..अपनी ज़िदगी की कठोर परेशानियों..से झलाकर ये अपने जन्म को ही कोसने लगे..आलम ये है कि सारा गुस्सा मृतक किन्नर को जूते चप्पलों से पीट पीट कर निकालते हैं... और दुआ करते हैं कि ऐसा जन्म लेकर वापस इस दुनिया में मत आना...

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इनकी इस मजबूरी को ख़त्म कर दिया है..और लोकतंत्र की परिभाषा को सार्थक कर दिया है..इसके लिए मानवाधिकार संस्थाएं और वो सभी एनजीओ धन्यवाद के पात्र हैं..जिन्होंने समाज और व्यवस्था से अलग खड़े होकर किन्नरों की पहचान के लिए लड़ाई लड़ी..वहीं दूसरी ओर मीडिया, राजनेता और समाज को अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर इस बिरादरी को देखने की ज़रुरत है..माननीय उच्च न्यायालय ने तो इनके साथ न्याय कर दिया लेकिन इनके सबसे बड़े अपराधी तो हम और आप हैं....इसलिए हमारी ये ज़िम्मेदारी है कि हम इनके अधिकारों के सरंक्षण के लिए प्रयासरत रहें...कष्ट सहकर भी दुआएं देने वाली इस बिरादरी को इंसान समझें...और इनकी इंसानियत के बदले इनको इंसानियत ही बांटे...


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