हरियाणा के गुरुद्वारों और सिख संस्थानों की देखरेख के लिए बनाई गई हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से उठे विवाद और फिर बन रहे तनाव भरे हालात के लिए जिम्मेदार कोई एक पक्ष नहीं है। अगर हम पूरे घटनाक्रम पर नज़र डालें तो इसके लिए जितनी जिम्मेदार कांग्रेस और हरियाणा सरकार है उतना ही दोषी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के साथ-साथ अकाली दल है। सबसे पहले हरियाणा की कांग्रेस सरकार पर उंगली उठती है। HSGPC बनाए जाने का मामला बरसों से लटका हुआ था। आखिर इसे बनाने में राज्य सरकार को दल साल का वक्त क्यों लगा। ये भी तब जबकि वहां तभी से एक ही मुख्यमंत्री राज कर रहे हैं। HSGPC बनाने पर कोई अड़चन इस दौरान कानूनी तौर दिखाई नहीं दी। लेकिन 11 जुलाई को विधानसभा का ख़ास सत्र बुलाकर हरियाणा की गुरुद्वारा कमेटी बनाने का बिल फटाफट लाकर पास कर दिया गया। यानि तब जबकि विधानसभा चुनाव में महज दो तीन महीने बचे हैं। कांग्रेस की तरफ से दलील है कि HSGPC बनाना तो उनके चुनाव घोषणा पत्र में सूबे के सिखों से किया गया वादा है जो वे पूरा कर रहे हैं। यहां सवाल उठता है कि क्या दस साल तक सिखों के इस वादे को क्या सरकार भूली रही और इसकी याद तब आई जब चुनाव ऐन सिर पर आ गए। ऐसे में क्यों ना माना जाए कि विधानसभा चुनाव में सिखों के वोट बटोरना ही HSGPC के गठन का मकसद है। हरियाणा की शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की वजह से उठे विवाद ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और अकाली दल को कठघरे में ला खड़ा किया, जो हरियाणा में सियासी रसूख रखता है। हरियाणा से चुने गए SGPC सदस्यों में से ज्यादातर अकाली पाले के हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि उन सदस्यों ने HSGPC के गठन को रोकने के लिए बीते बरसों के बीच कोई ठोस कदम नहीं उठाया। वहीं सवाल ये भी उठता है कि जो पंथक समागम HSGPC के गठन के बाद ऐलान किया गया था वैसा कुछ, गठन को रोकने के लिए पहले क्यों नहीं किया गया। HSGPC का विरोध करने वालों की दलील है कि कि ये सिखों को बांटने की साजिश है और इसके पीछे कांग्रेस का हाथ है। ऐसे में सवाल उठता है कि दिल्ली, महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में जब अलग-अलग गुरुद्वारा कमेटियां हैं तो हरियाणा की अलग कमेटी होने से सिख कैसे बंटेगे? जहां तक गुरुद्वारों का एक जैसा प्रबंध और सिस्टम अपनाए जाने की बात है तो इसी नज़रिए से बनाए गए ऑल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट को लागू किए जाने की कोशिशें क्यों नहीं की गईं। ये काम अब तो केन्द्र में NDA की सरकार बनने के बाद और भी आसान है क्योंकि खुद अकाली इस सरकार का हिस्सा है। इस पर HSGPC के गठन के तरीके को ग़ैर-कानूनी कहा जा रहा है, तब सवाल उठता है कि इस ग़ैर-कानूनी काम के खिलाफ वो पक्ष अदालत का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाता जिसे ऐतराज़ है।
संजय वोहरा
संपादक, ज़ी पंजाब हरियाणा हिमाचल
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