दादरी के बिसाहड़ा गांव में जो कुछ हुआ उसने हमारे समाज के सामने कई सवालों को खड़ा कर दिया है...उनमें से ही एक सवाल उठा है गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने का....कई मंत्रियों, नेताओं ने इसके लिए अपने अपने विचार रखे हैं...हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने भी गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने की सिफारिश की है.....तो बाबा रामदेव ने भी इसपर अपनी सहमति जताई है...गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने का ये सवाल सच में आज सोचने लायक है...जिसके पीछे कई तर्क दिए जा सकते हैं...पहला तर्क हमारे सामाजिक तानेबाने से जुड़ा है...भारतीय समाज विभिन्नताओं से भरा है...लेकिन भारत के प्रबुद्ध लोगों ने इन विभिन्नताओं को एकता में पिरौने के लिए हर कोशिश की है....हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई सबकी मान्यताएं, सबके भगवान अलग हैं...लेकिन भारत ने सबसे ऊपर की बात कह कर भगवान को एक माना है...सभी धर्मों की एक जैसी बातों को किताबों में पढ़ाया जाता है....ताकि बच्चों को ये ज्ञान मिल सके कि हम सब एक हैं......हर उस अच्छी चीज़ को जोड़ने की कोशिश हुई है...जिसने भारत को एकता की ओर बढ़ाया है...गायकों ने अपने गीतों से...कवियों ने अपनी कविताओं से...हर किसी ने कोशिश की है....तो ऐसे में हम गाय को कैसे भूल सकते हैं...जी हां गाय..एक ऐसा पशु जिसने हमें एक रहने की प्रेरणा दी है....जिसे हर किसी ने जाना और माना है..हिंदू धर्म में तो इसे मां का दर्जा दिया ही गया है...इस्लाम धर्म ग्रंथों में भी गाय के महत्व को माना गया है....हदिस-ए-मुबारक में गाय के दूध को उत्तम बताया गया है...साथ ही गाय के गोश्त को बीमारी करने वाला कहा गया है... गोकशी यानी गोहत्या को भी बुरा बताया गया है.. अब बात सिख धर्म की करते हैं...सिख धर्मगुरुओं ने भी गाय का गुणगाण किया है...
सिख धर्म में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करते हुए कहा था कि यह पंथ आर्य धर्म, गौ-ब्राह्मण, साधु-संत और दीन दुखी जन की रक्षा के लिए बना है। उन्होंने अपने ‘दशम ग्रंथ’ में एक जगह लिखा है,
'यही देहु आज्ञा तुर्क को सपाऊँ, गो घात का दुख जगत से हटाऊँ।
यही आस पूरन करो तौं हमारी मिटे कष्ट गौऊन छुटे खेद भारी।'
सन 1871 में पंजाब में मलेर कोटला में नामधारी सिखों ने गो रक्षा के लिए अपनी कुर्बानियां दी थीं
इसाई धर्म का भी गाय से जुड़ाव रहा है...ईसा मसीह का जन्म गऊ शाला में हुआ था...इसलिए उनका गायों से ख़ास लगाव था...
आर्थिक ताने बाने की बात करें...तो गाय भारतीय गांवों की आर्थिकता का अहम हिस्सा रही हैं....
.भारत के गांवों की भेड़, बकरी, ऊंट के बिना तो कल्पना की जा सकती है...लेकिन गाय के बिना भारत के गांव की कल्पना करना बेमानी है...गाय से जहां लोगों को पौष्टिक दूध मिल रहा है...तो वहीं उसके दूध को बेचकर वो रोज़गार भी पा रहे हैं.....गाय को ग्रामीण इलाकों में किसी परिवार के सदस्य की तरह ही पाला जाता है.....फिर चाहे वो हिंदू की गाय हो या फिर मुसलमान की..सर्वोत्तम मानी जाने वाली भारत की देशी गाय की तादात लगातार घटती जा रही है....जिसे बचाना बेहद ज़रूरी है...इसकी उपयोगिता को जानकर ही ब्राज़ील, अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत में पाई जाने वाली गिर नस्ल को अपने देश ले जाकर पाल रहे हैं...और उनका निर्यात चीन जैसे देशों को भी कर रहे हैं.
गाय की इस महत्ता को धर्मों ने तो पहचाना ही भारत में विदेश से आईं ताकतों ने भी खूब सराहा...खुद अकबर के शासनकाल में गोहत्या पर प्रतिबंध लगा हुआ था... औरंगज़ेब ने भी गोहत्या पर पाबंदी लगा रखी थी. हर कोई गाय के महत्व को जानता और मानता था...गाय के अलावा कोई और पशु ऐसी ख़ासियतें रखता हो तो ज़रा बताएं...जिसको हर धर्म ने माना हो....जिसको मुगल बादशाहों ने पहचाना हो..जिसको पालने की सिख धर्मगुरु ने वकालत की हो...जिसके दूध, गोबर, मूत्र, का कई बिमारियों को सही करने में इस्तेमाल हुआ .जिसके चलने से मिट्टी की उर्वर्ता भी बढ़ जाती हो. ..जो मरकर भी उपयोगी हो...ऐसा पशु है गाय...
अब कोई कहेगा कि गाय की छवि कमज़ोर जानवर की है...तो इसे भारत का राष्ट्रीय प्रतीक कैसे बनाया जा सकता है..जब गाय अपने दूध से पूरे देश में ताकत का संचार कर रही है...बीमारियों से लड़ने की ताकत दे रही है..तो गाय की छवि को कमज़ोर कैसे कहा जा सकता है...वहीं गाय अहिंसा का भी प्रतीक है...जिसका भारत हमेशा से पक्षधर रहा है.. महान धर्मनिर्पेक्ष और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने भी गाय को अहम बताया है...गांधी ने गाय के लिए कहा है कि अगर कहीं गाय कटती है तो समझा जाए वहां मुझे काटा जा रहा है....भारत के राष्ट्रपिता की ओर से दिया गया ये बयान क्या कोई मायने नहीं रखता....क्या हमें बापू के इस संदेश की ओर ध्यान नहीं देना चाहिए...इन सभी तर्कों को ध्यान में रखकर गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने की बात कही या सोची जाए तो गलत नहीं होगा....बस सबको एक होकर इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है.....
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