लोया पर अब क्यों रोया CARAVAN ??

गुजरात में चुनावी मौसम और मोदी की लहर के बीच सहराबुद्दीन एनकाउंटर केस एक बार फिर से सुर्खियों में है....अग्रेज़ी न्यूज़ मैगज़ीन CARAVAN ने अमित शाह पर मामले की जांच में न्यायिक प्रणाली को प्रभावित करने का आरोप लगाया है.....मैगज़ीन ने परिवार के हवाले से ये आरोप लगाया है कि केस की सुनवाई कर रहे जज बी.एच लोया की मौत हार्ट अटैक से नहीं बल्कि साज़िशन हुई थी...ताकि केस में मनमाफिक जजमेंट दिलाई जा सके...जस्टिस के परिवार वाले भी सामने आए हैं,....और साज़िशन मारे जाने के बहुत सारे संदेह सामने रखे च हैं...भात में न्यायिक तंत्र को अपने फेर में करना अब कोई बड़ी बात नहीं है..हो सकता है कि मैगज़ीन  और परिवार की बातों में कुछ सच्चाई हो...लेकिन उनके सामने आने का वक्त अपने आप में बहुत से सवाल खड़े करता है...जिससे वो खुद कटघरे में खड़े हो गए हैं...जस्टिस की मौत कोई छोटी बात नहीं होती...परिवार के मुताबिक उन्हें पहले ही इसका शक होने लगा था...कि उनको मारा गया है..तो सवाल ये है कि जस्टिस के परिवार ने आवाज़ क्यों नहीं उठाई...चलो मान लिया कि उन पर दबाव होगा...लेकिन दबाव अगर बनाना ही होता...तो सबसे पहले सहराबुद्दीन के एनकाउंटर के बाद उसके परिवार वालों पर बनाया जाता ताकि वो केस ही ना करें....लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ...? एक और तर्क यहां ये है कि परिवार की कोई आवाज़ नहीं बना..किसी ने उनकी ख़बर छापी नहीं..जस्टिस की मौत दिसंबर 2014 में हुई..तब तक तो सोशल मीडिया भी भारत पर खूब छाया हुआ था....सोशल मीडिया पर ही कोई मुहिम चला देते...बहस छिड़ती..लोगों तक बात पहुंचती...तो दबाव भी बन जाता......विपक्षी तो साथ देते ही...बहुत से लोग भी जुड़ जाते...सोशल मीडिया में इतनी ताकत तो है ही.,,फिर इसे आप देश के बाहर रहकर भी ऑपरेट कर सकते थे..कोई डर भी ना रहता....लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया...क्यों ? आजकल आम लोग अपनी छोटी छोटी समस्याओं की शिकायत सोशल मीडिया पर करते हैं...और खूब चर्चा होती है...तो फिर आपने ऐसा क्यों नहीं किया...? मामला दबा क्यों दिया....दोषी तो आप भी हैं...आपको अपने संदेह बताने से किसी ने नहीं रोका था...ऐसे में ये तर्क भी जाता रहा....कि किसी ने नहीं छापा....अब गुजरात चुनाव के दौरान किसी मैगज़ीन ने आपकी बात को रखा है,,.वजह साफ है..उंसे भी पैसे कमाने हैं.....चुनाव की बहती गंगा में हाथ धोना है,,,,अब जस्टिस लोया के परिवार को भी लोग विरोधी पार्टियों के नुमाइंदों के तौर पर ही देखेंगे.....CARAVAN की रिपोर्ट और भी सवाल उठाती है....रिपोर्ट में क्लिन चिट मिलने पर सवाल है...तो क्या ये माना जाए...कि जिन न्यायाधीश ने ये फैसला सुनाया था....उनकी नैतिकता पर सवाल उठाया जा रहा है....? रिपोर्ट में कहा गया कि जिस न्यायाधीश को 100 करोड़ की पेशकश की गई थी....उन्हें कहा गया था कि क्लीन चिट वाले दिन मीडिया का इस ख़बर से ध्यान भटकाने के लिए एक बड़ी ख़बर आएगी...उसकी तैयारी भी हो गई है,....आगे कहा है कि जिस दिन शाह को क्लीन चिट मिली..उस दिन क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने टेस्ट क्रिकेट से सन्यास ले लिया....तो ऐसे में क्या ये भी माना जाए..कि ये भी प्लानिंग थी....साज़िश थी...अगर ऐसा है...तो उनसे भी पूछताछ कर लो...सौ बात की एक बात ये है कि किसी अनसुलझे सवालों का जवाब चाहिए हो...तो वक्त पर चोट करनी पड़ती है...बेवक्त कुछ सुलझाना आसान नहीं होता...बाद में तो सभी इसे राजनीतिक फायदे के लिए प्रचारित एक दांव ही मानते हैं....

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