बिसाहड़ा के बाद हरियाणा का गांव सुनपेड़ जातीय भेदभाव और उसकी वजह से हुईं हत्याओं से सुलग रहा है..पूरा देश आज सुनपेड़ को दलितों और सवर्णों में बंटे गांव के तौर पर देख रहा है..जहां सवर्ण पिछड़ों के साथ बेइंसाफी करते हैं..हत्याएं कर दी जाती हैं...वहीं दलित डर के माहौल में रहते हैं...सवर्ण और दलितों की इस कशमकश में फंसे सुनपेड़ का सच क्या है... इस गांव में अगर हमेशा से ही ऐसा हो रहा था...तो अचानक कैसे सुर्खियों में आया..इतने दिन से कहां गायब था...इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा..आपको याद है...कुछ साल पहले शाहरुख ख़ान की एक फिल्म आई थी MY NAME IS KHAN जिसमें उनका एक डायलॉग बड़ा ही अच्छा लगा था.." अम्मी कहती है कि दुनिया में सिर्फ दो तरह के इंसान हैं अच्छे इंसान और बुरे इंसान' ना अच्छे इंसान का कोई जाति धर्म संप्रदाय होता है और ना ही बुरे का..ये डायलॉग हमारे दिलों को छू गया था...क्योंकि इस डायलॉग ने हमारे समाज में फैली गलत धारणाओं को कचौटा था..हमने इस डायलॉग पर खूब तालियां बजाईं लेकिन प्रैक्टिकल होकर इसे कभी नहीं अपनाया. कभी इस नज़रिए से घटनाओं का विश्लेषण नहीं किया....जब भी जहां भी कोई घटना हुई उसे फटाफट जाति, धर्म, सम्प्रदाय में बांट दिया...फरीदाबाद के सुनपेड़ में भी कुछ ऐसा ही तो हो रहा है..जहां दो परिवारों की आपसी रंजिश की वजह से हत्याएं हुईं..निर्दोषों का खून बहा..दो मासूम भी चल बसे लेकिन हमने इस बुराई को, इस बुरे काम को देखने और इससे लड़ने की बजाए इसे अगड़ों और पिछड़ों में तोड़ दिया..अगर ऐसा ना करते तो काम कैसे चलता..मीडिया को बहस का मुद्दा मिल गया..और राजनेताओं को अपनी राजनीति चमकाने का साधन.. एक के बाद एक नेता सुनपेड़ पहुंचने लगे..इसका नतीजा क्या हुआ.. पूरे देश में सुनपेड़ पर थू-थू होने लगी...पुतले फुंकने लगे...रोष होने लगा...कई दिनों का बवाल खड़ा हो गया...लेकिन इन सबके बीच सुनपेड़ शोकाकुल है..गांव के लोगों ने दो मासूमों की हत्याएं होने पर दिवाली ना मनाने का फैसला किया है...पिछले साल भी जब एक परिवार से जुड़े सदस्यों की ओर से दूसरे पक्ष के परिवार के लड़कों की हत्या की गई थी..तब भी गांव में दिया नहीं जला था...अगड़े हों या पिछड़े सभी ने जाति, धर्म, सम्प्रदाय को भुलाकर एक दूसरे के सुख दुख में साथ दिया था.. गांव वालों की माने तो उस घटना के बाद भी सब सौहार्द से रह रहे थे.. गांव में अगर किसी सवर्ण की मृत्यु हो जाती तो उसमें सब जाति,समुदाय के लोग शामिल होते...गांव का माहौल बिल्कुल शांत था...एकता बनाए रखने के लिए गांव के लोगों ने पूरी कोशिश की..लेकिन इन सबमें एक वारदात ने पूरे गांव पर भेदभाव की तोहमत लगा दी... आपसी रंजिश की वजह से दो परिवारों में हुई हत्याओं को लेकर पूरे गांव को अगड़ों और पिछड़ों में बांट दिया गया.हर किसी को शक की निगाह से देखा जाने लगा...इन सबके बीच बुराई कहीं छू मंतर हो गई...उसका विरोध गायब हो गया..और दलित और स्वर्ण सुर्खियां बन गए..मामला दो परिवारों की आपसी रंजिश का था लेकिन उसे ऐसे पेश किया गया जैसे ये पूरा प्रकरण दलितों और सवर्णों का है..बुरा काम उन दो परिवारों ने एक दूसरे के साथ किया..लेकिन सवाल पूरे गांव के लोगों पर उठ रहे हैं...पूरा गांव जातीय भेदभाव को लेकर कटघरे में हैं... आखिर क्यों इस प्रकरण को सीधे तौर पर नहीं देखा जा रहा.?.आख़िर क्यों इस बुरे काम में भी जाति को ढूंढकर ही धारणाएं बनाईं जा रही हैं....क्या ये हमारी एकता के लिए घातक नहीं है...आखिर कौन हैं वो लोग जो आपसी रंजिश के इस खेल में भी समाज को बांटने की साज़िशें रच रहे हैं...?. कौन हैं वो जो समाज को बांट कर लाभ कमाना चाहते हैं.?. ये आप और मैं अच्छी तरह से जानते हैं... अफसोस इस बात का है कि जो लोग आज की तारीख में जाति, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर सिर्फ बुराई के ख़िलाफ हैं उनको पूछने वाला कोई नहीं है...मीडिया ऐसे लोगों को भूले भटके ही कवरेज देता है..देता भी है तो उनके मुंह से किसी ना किसी तरीके अपने लाभ की बात निकलवाने की कोशिश रहती है...क्यों नहीं मीडिया ऐसी ख़बरों को दिखाते हुए सिर्फ वारदात का ब्यौरा देता..जाति बताने की क्या ज़रूरत पड़ जाती है..वहीं तथाकथित सेक्यूलर नेता भी जाति सुनते ही वहां पहुंच जाते हैं...क्यों नहीं सिर्फ बुरे काम की निंदा करते.....इस घटना में दो मासूमों का मारा जाना अहम है ना कि मारे गए दो मासूमों का किसी जाति विशेष से संबंध रखना...अगर उनकी जाति ना पता चलती तो क्या बच्चों के प्रति हमारी संवेदनाएं कम हो जातीं..?.हमें हत्याओं का विरोध करना चाहिए..फिर वो चाहे दलित की हो या फिर सवर्णों की. सिर्फ.बुराई का विरोध होना चाहिए...सुनपेड़ भी बुराई के विरोध में हैं..लेकिन उसकी सच्चाई सुनने वाला कोई नहीं..है...
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